तीन तलाक क़ानून की संवैधानिक समीक्षा के लिये सर्वोच्च न्यायालय ने भरी हामी।

लम्बे इंतेज़ार अौर कई चुनौतियों के बाद तीन तलाक को अपराधिक कृत्य बनाने के लिये लाया गया क़ानून एक बार फिर क़ानूनी पेंच में फंसता हुआ दिखाई देने लगा। शुक्रवार को सर्वोच्च न्यायालय में जस्टिस एन.वी. रमन्ना अौर जस्टिस अजय रस्तोगी की संयुक्त बेंच के समक्ष कोर्ट नम्बर 3 में तीन तलाक़ कानून की संवैधानिकता को चुनौति देने वाली याचिकायें सूचीबद्ध थी।




मुस्लिम पक्षकारों की तरफ से वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद, राजू रामचन्द्रन, फरहान‌ खान आदि उपस्थित थे। प्रारम्भिक तर्कों पर ही सहमत होते हुए बेंच ने इन याचिकाअों पर सुनवाई के लिये अनुमति देकर, सरकार को नोटिस जारी करने का आदेश‌ दे दिया। जानकार बताते हैं कि यह सरकार के लिये एक तगड़ा झटका है क्योंकि उसके लिये यह क़ानून इतना महत्वपूर्ण था कि लोकसभा‌ चुनाव में भाजपा के घोषणा पत्र में यह एक प्रमुख मुद्दा था।

याचिकाकर्ता सैय्यद फारूक़ अहमद ने बताया कि पूर्व में‌ भी उन्होंने इस विधि को, जब यह अध्यादेश के रूप में आया था तो सर्वोच्च न्य‍ायालय में‌ चुनौती दी थी मगर मुख्य‌ न्यायाधीश की बेंच ने इसपर सुनवाई करने से‌ इंकार कर दिया था क्योंकि अध्यादेश एक अस्थाई विधि होती‌ है अौर सुनवाई पूरी होने से पहले यह स्वत: ही समाप्त हो जाता इसलिये जब वर्तमान में यह दोनो सदनों द्वारा पारित होने के बाद पूर्ण विधि बन गई है तो उन्होंने इसे चुनौती दी है अौर अब सुनवाई के लिये सहमति मिलने पर खुशी व्यक्त की अौर बताया कि हमें न्यायालय पर पूरा भरोसा है, इसकी असंवैधानिकता के कारण सर्वोच्च न्यायालय इसे अवश्य रद्द कर देगा।



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