स्मार्टफोन के इस्तेमाल से सूख रहा आंखों का पानी, विशेषज्ञ डॉक्टरों ने बताए ड्राई आई सिंड्रोम के खतरे

शहर के एक प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ने वाली छह साल की बच्ची को उसके माता-पिता किंग जॉज मेडिकल विश्वविद्यालय यानी केजीएमयू की नेत्र रोग की ओपीडी में लेकर पहुंचे। वह आंखें हर वक्त मलती रहती है। बिना कारण उसकी आंखों से पानी निकलता है। जब भी पढ़ने बैठती है, आंखें मलते-मलते ही वक्त बीत जाता है। डॉक्टर का कहना है कि उसे ड्राई आई सिंड्रोम यानी आंखों का सूखापन की बीमारी है।
कुछ ऐसी ही समस्या 38 साल के बिजनेसमैन को भी है। उन्हें लगता है कि आंखों में जैसे कुछ गिर गया है। बार-बार आंख धोने पर भी राहत नहीं मिलती। डॉक्टर के मुताबिक, वह भी ड्राई आई सिंड्रोम की चपेट में है। समय रहते इसका इलाज न होने से पुतली में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। केजीएमयू की ओपीडी में ड्राई आई के रोजाना 30 से 35 मरीज आ रहे हैं। ये मरीज तीन साल से लेकर 40 साल तक की आयु के हैं।




केजीएमयू के वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. अरुण शर्मा का कहना है कि पहले आंखों में सूखापन की वजह प्रदूषण व कम्प्यूटर का अधिक इस्तेमाल, कुछ प्रकार की दवाओं का अधिक सेवन और विटामिन ए की कमी हुआ करती थी। पिछले दो सालों में इस सिंड्रोम का सबसे बढ़ा कारण निकल कर आया है मोबाइल फोन का अधिक इस्तेमाल।

समझिए, क्या है ड्राई आई सिंड्रोम
ड्राई आई होने पर आंखों में आंसू कम बनते हैं। आंखें शुष्क होने पर आंखों की जलन बनी रहती है। आंखों में सूजन रहती है। यहां तक कि आंख के सामने की सतह पर घाव का निशान पड़ सकता है। कभी-कभी आंखों में खरोंच का अहसास होता है। आंखों में पानी आना भी ड्राई आई सिंड्रोम का लक्षण हो सकता है। यह स्थिति लेसिक व मोतियाबिंद के सर्जरी के नतीजों को प्रभावित कर सकती है।

बच्चों को न थमाएं फोन
बच्चा खाना नहीं खा रहा, रो रहा और लाख जतन के बाद भी चुप नहीं हो रहा या फिर ज्यादा शैतानी कर रहा है, तो अक्सर लोग बच्चे के हाथ में मोबाइल पकड़ा देते हैं। बच्चों को फुसलाना ही है तो टेलीविजन चला दें, पर उनके हाथों से मोबाइल ले लें।

मोबाइल गेम, वीडियो से बचें
युवाओं के पास दिनभर की थकान मिटाने और दिमाग को आराम देने का तरीका है मोबाइल पर गेम, सोशल मीडिया पर चैटिंग और तमाम साइट्स पर वीडियो देखना। बच्चे-युवा सभी रात में बिस्तर में घुसकर घंटों मोबाइल पर गेम खेलते, फिल्में देखते हैं। हर हाल में ये आदतें छोड़नी होंगी।




…इसलिए जरूरी है संभलना
कम हो जाता है पलक झपकना : कमरे की लाइट बंद कर मोबाइल पर आंखें गड़ाना नुकसान करता है। इससे पलक झपकने की दर कम हो रही है। आंखें लाल होने पर बार-बार धो लेते हैं। यह सब उनकी समस्या को बढ़ा रहा है।
पुतली को नहीं मिल पाती ऑक्सीजन : डॉ. अरुण शर्मा कहते हैं कि आंखों की पुतली में खून की धमनियां होती हैं। पुतली के आगे टीयर फिल्म होती है, जिससे यह ऑक्सीजन लेता है। जब हम फोन लगातार देखते हैं, पलक झपकाते नहीं तो ऑक्सीजन पुतली तक नहीं पहुंच पाती।

एसी भी नुकसानदेह : रानी लक्ष्मीबाई अस्पताल के नेत्र सर्जन डॉ. संजय कुमार विश्नोई कहते हैं कि लोग ज्यादातर एसी कमरों में रहने लगे हैं, इससे भी आंखों का पानी सूख रहा है।

उपाय : 30 सेकंड तक बंद करें आंखें
बच्चे हों या युवा आधे घंटे से अधिक मोबाइल या कम्प्यूटर का इस्तेमाल न करें। यदि करना मजबूरी है तो कामकाजी लोग काम के बीच में 30 से 35 सेकंड आंख बंद करके बैठ जाएं। इससे पुतली को ऑक्सीजन की सप्लाई होती रहेगी।

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