खुशवंत सिंह लिटफेस्ट के अंतिम दिन लेखक और फिल्म निर्देशक सईद मिर्जा ने कहा कि देश में मंदिर-मस्जिद को लेकर लड़ाई चल रही है। लोगों को समझना होगा कि मंदिर बन जाए या मस्जिद, इससे देश की दशा नहीं बदलेगी। इस लड़ाई से मूल समस्याएं खत्म नहीं होंगी, इसके लिए सकारात्मक प्रयास करने होंगे। इनके बजाय अस्पताल या शैक्षणिक संस्थान बनाने पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
हमें भूल जाना पड़ेगा कि हम हिंदू हैं या मुसलमान। उन्होंने कहा कि मीटू अभियान ठीक है, लेकिन राफेल जैसे मसलों को भी नहीं भूलना चाहिए। हमें जो भी कहना है वो बेधड़क कहें, किसी से डरने की जरूरत नहीं है। सवाल पूछने वाले ही हमेशा आगे जाते हैं। मेमोरी इन द एज ऑफ एमनेसिया किताब पर सईद मिर्जा के अलावा फिल्म निर्देशक सुधीर मिश्रा ने भी चर्चा की।
अभिनेत्री दिव्या दत्ता ने अमृता प्रीतम की नजम से याद किए वारिस शाह
फिल्म अभिनेत्री दिव्या दत्ता ने भी बेहद संजीदगी के साथ ‘हमारी अमृता’ विषय पर वक्तव्य रखा। दिव्या ने खुशवंत सिंह की किताब पर आधारित ट्रेन टू पाकिस्तान फिल्म की शूटिंग के दौरान अमृता प्रीतम से मुलाकात का जिक्र किया और उसके बाद वह उनकी फैन बन गई। दिव्या दत्ता ने मैं तैनू फेर मिलांगी, कित्थे ते किस तरह ऐ पता नहीं…पंक्तियों के साथ सत्र का समापन किया।
पंजाबियत की पहली महिला लेखक अमृता प्रीतम के 1947 में विभाजन के वक्त लिखी कविता अज आखां वारिस शाह नूं…ने दो दिन से राजनीति की तपिश झेल रहे खुशवंत सिंह लिटफेस्ट को खामोश कर दिया। हर कोई इन पंक्तियों के भाव को पकड़ कर बंटवारे के दौरान पेश आए दर्द को समझने में उलझ गया।
इन्होंने लिया चर्चा में हिस्सा- खुशवंत सिंह लिटफेस्ट के आखिरी वेनडेल रोड्रिक्स, जे जैन व गिलेन राइट, राजवी मेहता, मनु पिल्लई व ईरा मुखोती, हरजीत सिंह व डॉ. चंद्र त्रिखा व निरूपमा दत्त ने चर्चा में भाग लेकर विचार रखे।