संसद द्वारा पारित वक़्फ़ संशोधन अधिनियम-2025 पर भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना ने 5 मई तक अंतरिम रोक लगा दी है. विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने संसद में बहस के दौरान एक शब्द भी नहीं बोला. उनकी बहन प्रियंका गांधी, जो वायनाड से सांसद हैं, जहां 40% मुसलमान हैं, ने कांग्रेस पार्टी के व्हिप के बावजूद मतदान में भाग नहीं लिया. धर्मनिरपेक्षता के पक्षधरों के लिए यह दुखद है.
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने न्यायपालिका को सरकारी मामलों में हस्तक्षेप न करने की खुली धमकी दी है. भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने देश में ‘गृहयुद्ध’ के लिए मुख्य न्यायाधीश को जिम्मेदार ठहराया है. सीजेआई ने सरकार को केंद्रीय वक़्फ़ परिषद और राज्य वक़्फ़ बोर्डों में कोई नया सदस्य नियुक्त न करने और अधिनियम लागू होने से पहले अधिसूचित या पंजीकृत किसी भी ‘वक़्फ़–बाय–यूजर’ संपत्ति के चरित्र को बदलने से रोक दिया है.
सरकार ने अपने पूरे संसाधनों के साथ वक़्फ़ बोर्ड के खिलाफ से अभियान छेड़ दिया है, जो स्पष्ट रूप से मुसलमानों के खिलाफ एक और लामबंदी है.
एक धारणा बनाई जा रही है कि वक़्फ़ बोर्ड पूरी तरह से लुटेरा निकाय है, जो दुनिया की किसी भी संपत्ति पर दावा कर सकता है, जबकि सरकार असहाय देखती रहती है. वास्तविकता बिल्कुल इसके विपरीत है. सरकार मुस्लिम भूमि पर बनी अपनी विशाल महलनुमा इमारतों के साथ बैठी है, जबकि मुसलमान उन्हें बेसहारा होकर देख रहे हैं.
सरकार ‘वक़्फ़-बाय-यूजर’ को खत्म करना चाहती है
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 1300 पन्नों का एक बड़ा हलफनामा पेश किया है कि कैसे 2013 के वक़्फ़ संशोधन के बाद भारत भर में वक़्फ़ बोर्डों ने वक़्फ़ संपत्तियों के पंजीकरण में 116% की जबरदस्त वृद्धि की है. यह सच हो सकता है कि वक़्फ़ संपत्तियों की संख्या में वृद्धि हुई है, लेकिन क्या कोई नई संपत्ति वक़्फ़ के रूप में जोड़ी गई है या यह संपत्ति पहले से ही वक़्फ़ थी?
सरकार दरअसल ‘वक़्फ़–बाय–यूजर’ को खत्म करना चाहती है. अगर इसे नहीं रोका गया तो लगभग हर दरगाह, खानकाह, कब्रिस्तान, ईदगाह, इमामबाड़ा, मजार, यतीमखाना, मस्जिद का अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा.
दरअसल अधिनियम की धारा 3 (सी) ने कलेक्टर को बेलगाम अधिकार दे दिए हैं. अब तक अगर वक़्फ़ बोर्ड में कोई संपत्ति पंजीकृत करनी होती थी, तो विरोधी पक्ष को वक़्फ़ ट्रिब्यूनल के पास जाना होता था. लेकिन, अब पंजीकरण से पहले डीएम की मंजूरी जरूरी है. अगर डीएम किसी विवाद पर वक़्फ़ बोर्ड को नोटिस या यहां तक कि स्वप्रेरणा से नोटिस जारी करता है, तो उसी क्षण वह संपत्ति वक़्फ़ संपत्ति नहीं रह जाएगी, जब तक कि डीएम उसका मालिकाना हक तय नहीं कर दे.
अधिनियम में यह भी स्पष्ट नहीं है कि अगर डीएम किसी संपत्ति को वक़्फ़ नहीं मानते हैं, तो ऐसी संपत्ति किसके पास जाएगी? पहले राज्य द्वारा अधिग्रहित संपत्तियों को निष्क्रांत संपत्ति या शत्रु संपत्ति के रूप में वर्गीकृत किया जाता था. नया प्रावधान क्या होगा?
धर्म परिवर्तन करने वालों के प्रति यह बेहद भेदभावपूर्ण है
इस अधिनियम की धारा 3(सी) ने वक़्फ़ न्यायाधिकरणों से सभी अधिकार छीन लिए हैं. धारा 5 धारा 3ए (2) ने वक़्फ़–अल–औलाद की अवधारणा को पूरी तरह से निरर्थक बना दिया है. धारा 4 (IX)(A) और 4(IX)(D) के अनुसार वक़्फ़ बनाने के लिए किसी भी व्यक्ति को पांच साल तक प्रैक्टिसिंग मुस्लिम होना जरूरी है. हाल ही में धर्म परिवर्तन करने वालों के प्रति यह बेहद भेदभावपूर्ण है और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. धारा 3ई अनुसूचित जनजाति को वक़्फ़ करने से रोकती है, जबकि तथ्य यह है कि एक अनुसूचित जनजाति मुस्लिम बनने पर भी अनुसूचित जनजाति ही रहती है.
धारा 3(डी) के बाद वे सैकड़ों मस्जिदें/इमामबाड़े जो स्वाभाविक रूप से ‘वक़्फ़–बाय–यूजर’ थे, अब नहीं रहेंगे. मुसलमानों को अब ऐसी जगहों पर दावा करने की अनुमति नहीं होगी. यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है.
संसद संविधान के मौलिक ढांचे को नष्ट नहीं कर सकती
अनुच्छेद 368 संविधान में संशोधन की अनुमति देता है लेकिन मौलिक अधिकारों को, विशेष रूप से केशवानंद भारती मामले के बाद, बदला नहीं जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने तय कर दिया है कि संसद को संविधान में संशोधन करने का अधिकार है, लेकिन वह इसके मौलिक ढांचे को नष्ट नहीं कर सकती.
वक़्फ़ अधिनियम संविधान अनुच्छेद 26 का उल्लंघन है, जो प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय को धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता का अधिकार देता है, उसे धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए संस्थानों की स्थापना और रखरखाव करने का अधिकार देता है. वक़्फ़ मुसलमानों का धार्मिक मुद्दा है, जिसकी गारंटी अनुच्छेद 26 देता है. अनुच्छेद 26 का संशोधन संसद के अधिकार क्षेत्र से बाहर है, फिर भी सरकार ऐसा करने पर आमादा है. अब सीजेआई को फैसला करना है. इसलिए सभी की निगाहें 5 मई पर टिकी हैं.
(लेखक उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्य सूचना आयुक्त और राजनीतिक विश्लेषक हैं.)