सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ने कहा, ‘UAPA मामलों की प्रक्रिया ही सजा, डरावना है स्टेन स्वामी की मौत का मामला’

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस आफताब आलम ने कहा है कि यूएपीए के मामलों में प्रक्रिया ही एक सजा है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि फादर स्टेन स्वामी की मौत का मामला हमें डराता है। जस्टिस आलम सीजेआर की ओर से आयोजित एक वेबिनार कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। वेबिनार का विषय ‘लोकतंत्र, असहमति और कठोर कानून पर चर्चा- क्या यूएपीए और राजद्रोह को हमारे कानून की किताबों में जगह मिलनी चाहिए?’ था।




जस्टिस आलम ने कहा कि, ‘यूएपीए दिखाता है कि हम किसी भी अन्य देश की तुलना में अपने लोगों की आजादी को बिना किसी जवाबदेही के लूटने के लिए तैयार हैं।’ लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ने यूएपीए के पफॉर्मेंस ऑडिट की व्याख्या की कि अधिनियम वास्तविक जीवन को कैसे प्रभावित करता है और दोषसिद्धि की कम दरों और लंबित मामलों की उच्च दरों को देखते हुए कैसे प्रभा‌वित करता है।

उन्होंने बताया, ‘2019 की एनसीआरबी की अंतिम रिपोर्ट में यूएपीए के तहत सजा की दर 29% रही। लेकिन यह सजा दर कैसे आई? 2019 में 2361 यूएपीए मामले लंबित थे, 113 मामलों को निस्तारित किया गया, जिनमें 33 मामलों में दोषसिद्धि हुई, 64 मामलों में दोषमुक्ति हो गई, जबकि 16 मामलों में बरी कर दिया गया, तो एक वर्ष में निस्तारित मामलों की दर 29 प्रतिशत रही।’ ‘यदि दर्ज मामलों की कुल संख्या और गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों की कुल संख्या के खिलाफ देखा जाए तो सजा की दर 2% पर आ जाती है, यह अधिक यथार्थवादी आंकड़ा है! समान रूप से महत्वपूर्ण ‘पुलिस निस्तारण दर’ के आंकड़े हैं, जो जांच के लंबित होने का उल्लेख करते हैं।




यूएपीए मामलों में आरोप-पत्र दायर करने की दर 42.5% जबकि जांच को लंबित रखने की दर 77.8% है।’ जस्टिस आलम ने कहा कि, ‘जांच और परीक्षण, दोनों चरणों में निस्तारण की कम दर और लंबित मामलों की उच्च दर, एक ऐसी स्थिति बदलती है, जहां मामला अंततः विफल हो सकता है लेकिन आरोपी 8 या 10 या 12 वर्षों तक कैद में रहना पड़ता है। केस के पास आधार नहीं होता टिकने का, लेकिन आरोपी को भुगतना पड़ता है! इसलिए यह कहना गलत नहीं है कि प्रक्रिया ही सजा है!’