अर्थव्यवस्था में सुस्ती से नौकरियों पर गहराया संकट, केवल एक सेक्टर में 35 लाख हुए बेरोजगार

आर्थ‍िक मंदी से बढ़ रही है बेरोजगारी

भारतीय अर्थव्यवस्था में तिमाही दर तिमाही सुस्ती आती जा रही है ऐसे में नौकरियों की संभावनाएं भी धूमिल होती जा रही हैं. लागत बचाने के लिए कंपनियां सीनियर और मध्यम स्तर के कर्मचारियों को निकाल रही हैं तथा ज्यादा से ज्यादा फ्रेशर्स को नौकरी दे रही हैं. साल 2014 से अब तक मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में ही 35 लाख लोगों की नौकरियां जा चुकी हैं.

आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि पिछले वर्षों में बेरोजगारी रिकॉर्ड स्तर पर रही है और जीडीपी में बढ़त से भी नौकरियों के मोर्चे पर खास राहत नहीं मिली है.

अर्थव्यवस्था में सुस्ती से लाखों नौकरियों पर संकट है. आईटी कंपनियां, ऑटो कंपनियां, बैंक सभी लागत में कटौती के उपाय कर रही हैं. कर्मचारियों में डर का माहौल बना है कि हालात इससे भी बदतर हो सकते हैं. बड़ी-बड़ी आईटी कंपनियों ने या तो छंटनी की घोषणा कर दी है या ऐसा करने की तैयारी में हैं. इसका सबसे ज्यादा सर मध्यम या वरिष्ठ स्तर के कर्मचारियों पर पड़ रहा है.




आईटी सेक्टर में 40 लाख नौकरियों पर संकट

आईटी सेक्टर के मध्यम से सीनियर स्तर के 40 लाख कर्मचारियों की नौकरी पर संकट है. कंपनियां फ्रेशर की भर्ती पर इसलिए जोर दे रही हैं, क्योंकि इनको बहुत कम वेतन देना पड़ता है. आईटी कंपनी कॉग्निजैंट ने 7,000 कर्मचारियों को निकालने का ऐलान किया है. कैपजेमिनी ने 500 कर्मचारियों को बाहर निकाल दिया है.

ऑटो सेक्टर की हालत तो पिछले एक साल से काफी खराब है. इसकी वजह से मई से जुलाई 2019 में ऑटो सेक्टर की 2 लाख नौकरियों पर कैंची चली है. यही नहीं, अभी भी इस सेक्टर की 10 लाख नौकरियों पर तलवार लटक रही है. मारुति सुजुकी ने 3,000 अस्थायी कर्मचारियों को बाहर निकाल दिया है. निसान भी 1,700 कर्मचारियों को बाहर निकालने की तैयारी कर रही है. महिंद्रा ऐंड महिंद्रा ने अप्रैल से अब तक 1,500 कर्मचारियों को बाहर निकाला है. टोयोटा किर्लोस्कर ने 6,500 कर्मचारियों को वीआरएस दिया है.

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35 लाख नौकरियां गईं

ऑल इंडिया मैन्युफैक्चरर्स ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक (AIMO) के मुताबिक साल 2014 से अब तक मैन्युफैक्चरिंग में ही 35 लाख से ज्यादा नौकरियों पर कैंची चल चुकी है.

टेलीकॉम सेक्टर की हालत भी पिछले कई साल से खराब चल रही है. खस्ताहाल हो चुकी सरकारी कंपनी बीएसएनएल ने अब तक वीआरएस स्कीम के तहत 75,000 लोगों को बाहर का रास्ता दिखा दिया है.

इस साल कई सरकारी बैंकों का विलय किया गया है. इसकी वजह से भी कर्मचारियों की संख्या में काफी कमी आई है. 9 सार्वजनिक बैंकों के कर्मचारियों की संख्या में 11,000 की कटौती की गई है. भारतीय स्टेट बैंक से सबसे ज्यादा 6,789 कर्मचारी बाहर किए गए हैं. पंजाब नेशनल बैंक ने 4,087 कर्मचारियों को बाहर किया है.




कितना गहरा है संकट

नौकरियों की गणना का कोई निश्चित तरीका नहीं है, इसलिए इस बात का सही अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि यह संकट कितना गहरा है. सरकारी आंकड़ों से सिर्फ औपचारिक क्षेत्र की नौकरियों का ही आकलन हो पाता है. इसके लिए ईपीएफओ, ईएसआईसी, एनपीएस से मिले रोजगार के आंकड़ों का सहारा लिया जाता है. ये आंकड़े कई बार परस्पर विरोधी होते हैं.

इसके अलावा भारत में 81 फीसदी लोगों को रोजगार अनौपचारिक यानी इन्फॉर्मल सेक्टर में मिलता है. इसलिए नौकरियों का सही-सही अंदाजा लगा पाना लगभग असंभव होता है. एम्प्लॉइज स्टेट इंश्योरेंस कॉरपोरेशन (ESIC) के आंकड़ों के मुताबिक सितंबर 17 से मार्च 2018 के बीच 83,35,680 नौकरियों, अप्रैल 18 से मार्च 19 के बीच 1,49,62,642 नौकरियों और अप्रैल 19 से अगस्त 2019 के बीच 64,52,017 नौकरियां का सृजन हुआ है.

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इसी प्रकार कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO)के मुताबिक सितंबर 17 से मार्च 2018 के बीच 15,52,940 नौकरियों, अप्रैल 18 से मार्च 19 के बीच 61,12,223 नौकरियों और अप्रैल 19 से अगस्त 2019 के बीच 42,27,109 नौकरियों का सृजन हुआ है.

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बेरोजगारी की दर रिकॉर्ड स्तर पर

पिछले कई साल से बेरोजगारी की दर 4 से 10 फीसदी के बीच रही है. सबसे ज्यादा बेरोजगारी की दर मई 2016 में 9.65 फीसदी की रही. सबसे कम बेरोजगारी की दर जुलाई 2017 में 3.37 फीसदी की रही. हालांकि राज्यों के हिसाब से देखें तो हालत भयावह लगते हैं. विभिन्न राज्यों में बेरोजगारी की दर 1 से 27 फीसदी के बीच रही है. त्रिपुरा में सबसे ज्यादा 27.2 फीसदी की बेरोजगारी दर रही है. इसके बाद दूसरे स्थान पर सबसे ज्यादा 23.4 फीसदी की बेरोजगारी दर हरियाणा में रहा. दिल्ली, कर्नाटक, महाराष्ट्र में बेरोजगारी दर क्रमश: 12.8 फीसदी, 5.8 फीसदी और 5.6 फीसदी रही है. सबसे कम 1.1 फीसदी की बेरोजगारी दर तमिलनाडु में रही है.




पढ़े-लिखों को भी रोजगार नहीं

बेहद कुशल और उच्च शि‍क्ष‍ित लोगों के मामले में भी बेरोजगारी दर काफी ज्यादा है. मार्च 16 से सितंबर 19 के बीच ग्रेजुएट लोगों के बीच बेरोजगारी की दर 16.89 से 14.79 फीसदी रही है. इसी तरह हायर सेकंडरी तक पढ़े लोगों के मामले में मार्च 16 से सितंबर 19 के बीच बेरोजगारी दर 11.88 से 13.01 फीसदी के बीच रही है.

जीडीपी से खास फर्क नहीं पड़ा 

ऐतिहासिक रूप से यह देखा गया है कि जीडीपी के बढ़ने से भी रोजगार के मोर्चे पर बहुत खास असर नहीं होता. देश में जीडीपी में जब बढ़त करीब 10 फीसदी की ऊंचाई पर थी, तब भी रोजगार में महज 1 फीसदी की बढ़त हुई थी. साल 1972 से 1986 के बीच औसत जीडीपी ग्रोथ 4.2 फीसदी हुई थी और इस दौरान रोजगार में औसत बढ़त महज 2.1 फीसदी हुई थी. दूसरी तरफ 1986 से 2004 के बीच औसत जीडीपी ग्रोथ 6 फीसदी थी, लेकिन रोजगार में औसत बढ़त महज 2 फीसदी हुई थी. साल 2004 से 2015 के बीच जीडीपी में औसत बढ़त 7.6 फीसदी हुई थी, लेकिन इस दौरान रोजगार में औसत बढ़त महज 0.7 फीसदी हुआ.

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