‘अर्जेंट’ और ‘ज़रूरी’ काम में फर्क करना सीखिए

थोड़ा जल्दी कर देना, अर्जेंट है – जैसे ही ये लाइन कानों में पड़ती है, आपके हाथ जल्दी जल्दी चलने लग जाते हैं. ख़ासकर अगर ये लाइन आपकी बॉस ने कही हो. लेकिन क्या वाकई में जो काम आपको अर्जेंट कहकर परोसा गया है, वो उतना ही अर्जेंट है. कहीं तुरंत किये जाने वाले काम के चक्कर में जरूरी काम तो पीछे नहीं छूट रहे

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ड्वाइट आइज़नहावर ने एक बार कहा था – ज्यादातर काम या तो अर्जेंट होते हैं या नहीं होते और या तो ज़रूरी होते हैं या नहीं होते. जिंदगी का मुख्य उद्देश्य उन जरूरी काम को निपटाना है जो अर्जेंट यानि तुरंत किए जाने वाले नहीं हैं. फिर भले ही वो जरूरी काम आपको ऐसे न लगे कि उन्हें तुरंत किया जाना है, लेकिन आप अहमियत उन्हीं जरूरी काम को दीजिए, अर्जेंट काम को नहीं.




बात ज़्यादा गोलमोल हो गई है तो इसे ऐसे समझिए – आप रोज़ नौकरी पर जाते हैं, रोज़ आपके पास अर्जेंट काम का ढेर लग जाता है जिसे किसी भी हालत में पूरा करके देना है. आप सोचते हैं ‘इसे पूरा करके, फिर उन ज़रूरी काम से निपटूंगा जिनके बारे में मैंने लंबे वक्त से सोच रखा है. जैसे खेती करने का सपना जिसके लिए मुझे खाका तैयार करना है. कितना वक्त हो गया है, कब तक नौकरी करता रहूंगा.’ ऐसा सोचकर आप फिर उन तुरंत निपटाए जाने वाले काम पर जुट जाते हैं. और करते करते एक दिन क्या, हर दिन बीतता जाता है, बीतता जाता है. आप रोज़ अर्जेंट काम निपटाते निपटाते साल बिता देते हैं, और वो ज़रूरी काम, वो खेती का काम जो आपको असल में करना है, जिसके बारे में आप सालों से योजना बना रहे हैं, वो पीछे छूटता चला जाता है.

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हालांकि जरूरी और अर्जेंट काम में फर्क पहचानकर भी आप बहुत बदलाव ला नहीं पाएंगे. क्योंकि ये ‘अर्जेंसी का कीड़ा’ बहुत कुछ भावनात्मक है जिस पर हमारा काबू नहीं है. जैसे ही कोई कहता है अर्जेंट, दिल धड़कने लगता है, पेट में कुछ कुछ होने लगता है और आपके हाथ उस काम को करने के लिए बढ़ जाते हैं. बेहतर होगा कि आपको जब कोई बोले कि तुरंत करना है तो थोड़ा ठहरकर सोचे कि क्या ये वाकई तुंरत करने जैसा है. कुछ नहीं तो हमारे सरकारी दफ्तरों को याद कीजिए, जिनके लिए कुछ भी अर्जेंट नहीं है, सब कुछ सुकून से होता है.




बाकी इस बात से मत डरिए कि ये काम नहीं होगा तो क्या आसमान गिर पड़ेगा. लेखक टिम फेरिस ने कहा है – कभी कभी छोटा मोटा कुछ बुरा हो जाने देना चाहिए ताकि अच्छी और बड़ी बातो के लिए रास्ता खुल सके. कई परिस्थितियां होती हैं जब हमें जल्दी कदम उठाने पड़ते हैं ताकि कुछ बुरा न हो जाए. लेकिन अगर ये बुरा, ज्यादा बुरा नहीं है तो उसका सामना करने में कोई बुराई नहीं है. यानि अगर आप खेती का सपना पूरा करने में जुटे हैं और उसके काफी करीब हैं तो दफ्तर के ‘अर्जेंट’ काम को नहीं करने के लिए पड़ने वाली बॉस की डांट से मत डरिए. हो सकता है आपकी खेती देखकर बॉस को भी अपने ज़रूरी और कम अर्जेंट काम पर ध्यान देने की प्रेरणा मिल जाए.

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